रुद्राभिषेक व पार्थिव पूजन

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जल धारा शिवप्रिया अर्थात जल की धारा भगवान शिव को सबसे प्रिय है | भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में निम्न प्रकार की पुजाएँ वर्णित हैं|
  • रुद्राभिषेक तथा पार्थिव पूजन =>
    रुद्राभिषेक अर्थात भगवान शंकर का अभिषेक वेद मंत्रो द्वारा |
  • रूद्र का अर्थ=> 
    रुतम् दुखम् द्रावयति नाशयति इति रुद्रः अर्थात रूद्र सभी दुःखो का कष्टों का नाश करते हैं|
कलयुग मे रुद्राभिषेक करना परम कल्याणकारी हैं|
द्राभिषेक या शिर्वाचन से हमारे पातक कर्म (पाप कर्म) भी जलकर भस्म हो जाते हैं|
 और पूजक (भक्त) मे शिवत्व ( शिव धर्म) का उदय होता है|
वैसे तो रुद्राभिषेक और पार्थिव पूजा किसी भी दिन कर सकते हैं परन्तु श्रावण 
या
 कार्तिक मास मे त्रयोदशी को और सोमवार को परम कल्याणकारी तथा शीघ्रातिशीघ्र फल देता हैं | 
 
भगवान शिव ने माता पार्वती से स्वयं यह कहा की जो व्यक्ति मेरी -शुक्लयजुर्वेदी रुद्राष्टाध्यायी  से पूजन करेगा मैं उसे मनोवांछित फल प्रदान करूँगा |
 
रुद्राभिषेक और पार्थिव पूजन कई प्रकार से होता है | जिसका प्रमाण शिव पुराण मैं है 
rudraabhishke pooja
 
(क) जलेन वृष्टिमापनोति व्याधिशान्तयै  कुशोदकैः ||
दध्रा च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन च | मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा ||
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति  पयसा चाभिषेचनात् | वन्ध्या वा काकवन्ध्या वा मृतवत्सा च याङ्गना ||
               सघः पुत्रमवाप्रोति पयसा चाभिषेचनात् |
(ख)   ज्वरप्रकोपशन्त्यर्थं जलधारा शिवप्रिया ||
घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम् | तदा वंशस्य विस्तारो जायते नात्र संशयः ||
प्रमेहरोगशान्त्यर्थं प्राप्नुयान्मानसेप्सितम् | केवलं  दुग्धधारा च तदा कार्या विशेषतः ||
शर्करामिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत् | श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शंकरस्य च |
सार्षपेणैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह |मधुना यक्ष्मराजोअपि  गच्छेद्वै शिवपूजनात् ||
पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा | जीवनार्थी तु पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै ||
पुत्रार्थी शर्करायास्तु   रसेनार्चेच्छिवं तथा | महालिंगड़ाभिषेकेण सुप्रीतः शङरो मुदा || 
                  कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेदविनिर्मितम् |
अर्थात जल से रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि (वर्षा ) होती है|
कुशा जल से अभिषेक करने पर रोग , दुःख से छुटकारा मिलता है|
दही से अभिषेक करने पर – पशु , भवन , तथा वाहन प्राप्ति होती हैं|
मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर धन वृद्धि होती हैं|
तीर्थ जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती हैं|
इत्र मिले जल से अभिषेक करने से – बीमारी नष्ट होती हैं|
दूध से अभिषेक करने से पुत्र प्राप्ति , प्रमेह रोग की शांति तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं|
गंगाजल से अभिषेक करने से ज्वर ठीक हो जाता | 
दूध शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से – सुबुद्धि प्राप्ति होती हैं|
घी से अभिषेक करने से – वंश विस्तार होता है | 
सरसों के तेल से अभिषेक करने से – रोग तथा शत्रु का नाश होता है |
शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करने से पाप क्षय होता है | 
इस प्रकार पूजन करने से साधक मैं शिवत्व रूप सत्य शिवं सुंदरम का उदय हो जाता है | 
उसके उपरांत शिव के आशीर्वाद से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं|  
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